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महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं में सर्वतो गिरा
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ವಂದೇ ಬಾಲಂ ಸ್ಫಟಿಕಸದೃಶಂ ಕುಂಡಲೋದ್ಭಾಸಿವಕ್ತ್ರಂ
सरकारी कामो में सफलता प्राप्त होती है।
सम्भाव्यः सर्वदुष्टघ्नः पातु स्वस्थानवल्लभः ॥ २०॥
किसी भी प्रकार का कोई भय नहीं होता, सभी प्रकार के उपद्रव शांत हो जाते है।
त्रिसन्ध्यं पठनाद् देवि भवेन्नित्यं महाकविः ॥ ३॥
ಲಾಕಿನೀಪುತ್ರಕಃ ಪಾತು ಪಶೂನಶ್ವಾನಜಾಂಸ್ತಥಾ
ಡಾಕಿನೀಪುತ್ರಕಃ ಪಾತು ದಾರಾಂಸ್ತು ಲಾಕಿನೀಸುತಃ
रक्षतु द्वारमूले च दशदिक्षु समन्ततः ॥ २०॥
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read more महाकालोऽवतु च्छत्रं सैन्यं वै कालभैरवः
ऊर्ध्व पातु विधाता च पाताले नन्दको विभुः।